NEET-UG परीक्षा मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने NTA से कई सवालों के जवाब मांगे हैं, मसलन सबसे पहले पेपर लीक कब हुआ? पेपर लीक और परीक्षा में आयोजित होने के बीच कितना गैप है? पेपर लीक कैसे हुआ, किन माध्यम से हुआ, कितने बड़े स्तर पर हुआ, पेपर लीक का फायदा उठाने वाले लोगो की पहचान के लिए क्या कदम उठाए है, किन सेंटर पर लीक हुआ है और कितने संदिग्ध लोगों का रिजल्ट रोका गया है। सुप्रीम कोर्ट ने NTA और केंद्र सरकार से यह भी पूछा है कि क्या साईबर फोरेंसिक एक्सपर्ट की मदद से संदिग्ध उम्मीदवारों की पहचान कर सकते हैं? ताकि गड़बड़ी का फायदा उठाने वाले और बेदाग कैंडिडेट के बीच अंतर किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने NTA, केंद्र सरकार और CBI को 10 मई को शाम 5 बजे तक जवाब दाखिल करने को कहा है। 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई करेगा।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इसमे कोई दो राय नहीं कि परीक्षा की गरिमा प्रभावित हुई है,पेपर लीक हुआ है, लेकिन हमें ये तय करना है कि लीक कितने बड़े स्तर पर हुआ ताकि हम फैसला ले सके कि दुबारा परीक्षा होनी चाहिए या नहीं। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने कहा कि दोबारा परीक्षा का कोई आदेश देने से पहले हमें इस बात का एहसास है कि ये 23 लाख छात्रों से जुड़ा मसला है। ऐसा होने पर उनके एकेडमिक शेड्यूल के गड़बड़ा जाने और उनकी दिक्कतों होने का भी हमे एहसास है। कोर्ट ने कहा कि अगर गड़बड़ी कुछ ही सेन्टर तक सीमीत है,पेपर लीक व्यापक स्तर पर नहीं हुआ है तब दुबारा परीक्षा करना सही नहीं होगा।
CJI ने कहा कि दोबारा परीक्षा आयोजित करने का फ़ैसला देने से पहले हमें ये तय करना होगा कि क्या सिस्टेमेटिक लेवल पर धांधली हुई है। क्या NEET परीक्षा की पूरी प्रकिया ही प्रभावित हो गई है, क्या उन लोगो को पहचान करना संभव है जिन्होंने इस गड़बड़ी का फायदा उठाया। क्या ऐसे लोगों की उन बाकी लोगों से अलग पहचान करना संभव है, जिन्होंने कोई गड़बड़ी नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब पूरी परीक्षा की प्रकिया ही प्रभावित हो और गड़बड़ी का फायदा उठाने वाले का बाकी लोगों से अंतर कर पाना मुश्किल हो, तब दोबारा परीक्षा करना ज़रूरी हो जाता है, वर्ना इसकी ज़रूरत नहीं है।