दिव्यांगों के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि किसी शख्श को महज 40 फीसदी से ज़्यादा बोलने और भाषा को समझने की असमर्थता यानि दिव्यांगता के चलते उसे मेडिकल कॉलेज में दाखिले से इंकार नहीं किया जा सकता। नेशनल मेडिकल काउंसिल के मौजूदा नियमों के मुताबिक 40 फीसदी से ज़्यादा ऐसी दिव्यांगता की सूरत में एमबीबीएस के कोर्स में दाखिला नहीं मिल सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ 40% दिव्यांगता होने भर से ही कोई MBBS में दाखिले के अयोग्य नहीं हो जाएगा। डिसेबिलिटी असेसमेंट बोर्ड अगर इस नतीजे पर पहुंचता है कि दिव्यांग होने की वजह से वो पढ़ाई पूरी करने में असमर्थ है, तभी उसे दाखिले से इंकार किया जा सकता है।
जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपने फैसले में कहा कि केवल इसलिए कि विकलांगता 44 से 45 प्रतिशत है, उन्हें MBBS पाठ्यक्रम में प्रवेश से इनकार नहीं कर दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि विकलांगता के आधार पर MBBS मे एडमिशन बाधक नहीं हो सकता जबतक विकलांगता मूल्यांकन बोर्ड द्वारा रिपोर्ट न हो कि उम्मीदवार चिकित्सा शिक्षा के लिए सक्षम नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी उम्मीदवार को महज 40 फीसदी से ज़्यादा बोलने और भाषा को समझने की असमर्थता (दिव्यांगता) के चलते उसे मेडिकल कॉलेज में दाखिले से इंकार नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा चिकित्सा शिक्षा से कुछ हद तक विकलांग उम्मीदवारों को अन्य विकलांग के समान रूप से प्रतिबंधित करने वाले NMC नियम व्यापक हैं। इसलिए NMC को अधिक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने के लिए अपने नियमों को संशोधित करने के लिए कहा है। दरअसल, NMC के मौजूदा नियमों के मुताबिक 40 फीसदी से ज़्यादा ऐसी दिव्यांगता की स्थिति मे MBBS के कोर्स में दाखिला नहीं मिल सकता। इसलिए SC ने कहा कि सिर्फ 40 फीसदी दिव्यांगता होने से भर ही कोई MBBS में दाखिले के लिए अयोग्य नहीं हो जाएगा और दाखिले से इनकार नहीं किया जा सकता, जब तक विकलांगता मूल्यांकन बोर्ड नहीं कहता है कि दिव्यांग होने की वजह से वह पढ़ाई पूरी करने में असमर्थ है। सुप्रीम कोर्ट को यहा य़ह तय करना था कि क्या 40% से अधिक भाषण और भाषा विकलांगता MBBS पाठ्यक्रम में प्रवेश में बाधा डाल सकती है?।