वक्फ संशोधित कानून 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अंतरिम आदेश देने पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। CJI बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच में गुरुवार को केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ बनाना और वक्फ को दान देना दोनों अलग है, यही कारण है कि मुसलमानों के लिए 5 साल की प्रैक्टिस की जरूरत रखी गई है, ताकि वक्फ का इस्तेमाल किसी को धोखा देने के लिए न किया जाए। SG तुषार मेहता ने आगे कहा कि अगर जमीन सरकारी है तो उसे वक्फ घोषित कर देने से सरकार का अधिकार समाप्त नहीं हो जाता।
SG ने कहा कि मैं आदिवासियों की जमीन नहीं खरीद सकता क्योंकि राज्य कानून इसकी अनुमति नहीं देता, उसी तरह अगर कोई वक्फ बनाता है और मुतवल्ली मनमानी करता है, तो अदालत उसे रद्द कर सकती है। तुषार मेहता ने कोर्ट से किसी भी अंतरिम आदेश के खिलाफ आग्रह किया और कहा कि यदि फाइनल सुनवाई से पहले ही कोई रोक लगती है और इस दौरान संपत्ति वक्फ को चली जाती है, तो उसे वापस लाना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि वक्फ अल्लाह का होता है। तुषार मेहता ने यह भी साफ किया कि वक्फ बनाना और वक्फ को दान देना दो अलग प्रक्रियाएं हैं। SG ने कहा कि कोई हिंदू भी वक्फ के लिए दान दे सकता है, लेकिन वक्फ बनाने की प्रक्रिया अलग है, जिसमें पांच वर्षों की मुस्लिम प्रैक्टिस की शर्त इसीलिए रखी गई है ताकि कोई गलत मंशा से वक्फ बनाकर दूसरों के अधिकार को न छीन सके।
राजस्थान सरकार के वकील राकेश द्विवेदी ने SG की दलीलों का समर्थन किया और कहा कि वक्फ बाय यूजर इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है और यह प्रथा भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर से आई है। राजस्थान सरकार ने कहा कि अयोध्या फैसले में भी तीन बार यह स्पष्ट किया गया है। SG ने यह भी बताया कि 1923 से लेकर 2013 तक वक्फ बनाने की योग्यता केवल मुस्लिमों तक सीमित थी, लेकिन 2013 में इसमें बदलाव कर कोई भी व्यक्ति जोड़ा गया, जिसे अब नए संशोधन में हटाया गया है। हिंदू व्यक्ति यदि सार्वजनिक धर्मार्थ उद्देश्य से मस्जिद बनाना चाहे, तो उसे वक्फ बनाने की जरूरत नहीं वह एक पब्लिक ट्रस्ट के ज़रिए भी यह कर सकता है, जैसा बॉम्बे ट्रस्ट अधिनियम में प्रावधान है।
SG ने कहा कि जनजातीय क्षेत्रों से भी याचिकाएं आई हैं, जिनमें वक्फ के ज़रिए ज़मीन हड़पने की शिकायतें की गई हैं। उन्होंने कहा कि अगर शरिया कानून के तहत किसी मुस्लिम को पर्सनल लॉ अपनाना है, तो उसे पहले यह साबित करना होगा कि वह मुसलमान है, यही वक्फ पर भी लागू होता है। SG ने अपनी दलीलों में जोर देकर कहा कि वक्फ द्वारा भूमि के अधिग्रहण से जुड़े मुद्दे व्यवहारिक हैं, अकादमिक नहीं और इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। सुनवाई के अंत में SG ने स्पष्ट किया कि वह 1995 के अधिनियम को चुनौती नहीं दे रहे, न ही वह इस मुद्दे को उठा रहे हैं, लेकिन अगर किसी को हाईकोर्ट भेजा जा रहा है तो सभी को भेजा जाए।