महाराष्ट्र भूमि अधिग्रहण मुआवजे से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राजस्व एवं वन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश कुमार को अवमानना नोटिस जारी कर 9 सितंबर को कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया है। दरअसल, हलफनामे में की गई अपमानजनक टिप्पणियों पर नाराज सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया है। हलफनामे में कहा गया था कि अदालत ने कानून का पालन नहीं किया है जबकि राज्य सरकार ने किया।
बुधवार को जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने बुधवार को भी महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि आपके मुख्य सचिव कुछ समय से दिल्ली नहीं आए हैं। आपको अपने ग्राहकों का डाकिया नहीं, बल्कि अदालत का अधिकारी बनकर निष्पक्ष रहना होगा। अपने हलफनामे में हमें संवैधानिक नैतिकता की याद दिलाने के लिए हम आपको धन्यवाद देते हैं। अधिकारियों से निर्देश लें, आप हमेशा समय नहीं मांगते रह सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि हम सब कुछ ध्वस्त करने के बाद संपत्ति वापस कर सकते हैं, क्या आप लुटियंस जोन से किसी की जमीन लेकर उसे मेरठ में दे सकते हैं? क्या यह राज्य सरकार की तार्किकता की कसौटी है। पिछली सुनवाई में भी मुआवजे के लिए उचित राशि नहीं देने पर सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई थी।।सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा था कि वो दशकों से लंबित भूमि मुआवजे का जल्द निपटारा करें, नहीं तो लाड़ली बहन योजना सहित फ्री बीज वाली कई योजनाओं पर रोक लगा देंगे।
क्या है पूरा मामला
दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने करीब 6 दशक पहले एक व्यक्ति की संपत्ति पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया था और इसके बदले एक अधिसूचित वन भूमि आवंटित की थी। याचिकाकर्ता के पुरखों ने 1950 में 24 एकड़ जमीन खरीदी थी। महाराष्ट्र सरकार ने 1963 में इसे अधिग्रहित कर लिया था, बाद में मुआवजे को लेकर मुकदमेबाजी हुई और निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक मामला गया। 37 करोड़ रुपए मुआवजा और भूमि के बदले कुछ जमीन देना तय हो गया। मुआवजे को तय रकम में से 16 लाख रुपए का भुगतान ही किया गया था। अधिग्रहित भूमि के बदले दी गई जमीन वन विभाग की संरक्षित भूमि है। बाद में राज्य सरकार ने ये जमीन रक्षा मंत्रालय को दे दी। मंत्रालय ने ये कहते हुए मुआवजा देने से इंकार कर दिया कि वो इस मामले में पक्षकार ही नहीं रहा है, तो मुआवजा क्यों दे।