सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश की जेलों में ऐसे एक हजार से ज्यादा विचाराधीन कैदी होंगे, जो सजा की सीमा पार कर चुके होंगे। वकील कह रहे हैं कि संख्या कम है, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर जेल में बंद एक भी व्यक्ति विचाराधीन है तो उसके लिए यह प्रावधान है, उसकी स्वतंत्रता को सीमित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि हम दीवार के बगल में खड़े उस आखिरी व्यक्ति की तलाश कर रहे हैं, जिसकी आवाज़ हम नहीं सुन पाए हैं। हम उसी व्यक्ति को संबोधित कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा राज्यों को यह समझना चाहिए कि यह तत्काल की समस्या नहीं इसके लिए एक सतत प्रणाली बनानी होगी। कोर्ट ने कहा कि यहां हम जितनी संख्या में जमानत आवेदन देख रहे हैं। ऐसे मे उसके लिए राज्य के अधिकारी विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ बैठकर जानकारी एकत्र करें, ना कि कॉपी पेस्ट न करें।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) में यह प्रावधान किया गया है कि पहली बार अपराध करने वाले और यदि उन्होंने विचाराधीन कैदी के रूप में अपराध के कारावास की एक तिहाई सजा काट ली है तो वे रिहा होने के हकदार हैं, जो लोग पहली बार अपराधी नहीं हैं उन्हें कम से कम आधी सजा का प्रावधान है। एक विचाराधीन कैदी जिसे शुरू में आजीवन कारावास जैसे जघन्य अपराध का आरोपी माना जा सकता है, उस पर बाद में छोटे अपराधों के लिए आरोप तय किए जा सकते हैं। इस अदालत के लिए इस बात पर जोर देना जरूरी है कि जेलों में कैद महिला कैदियों की पहचान के लिए विशेष अधिकार बनाए जाएं और जहां महिला कैदी बंद हैं, संबंधित जेल अधीक्षकों को ऐसी महिला कैदियों पर विशेष ध्यान देना चाहिए जो बीएनएसएस की धारा 479(1) के तहत रिहाई के लिए पात्र हो गई हैं। जिन राज्यों ने उचित प्रारूप में जवाब नहीं दिया है, उनसे दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल किया जाना चाहिए।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार समेत विभिन्न राज्यों के हलफनामे पर विचार किया, विचाराधीन कैदियों कि रिहाई नीति को लेकर दायर हलफनामे पर विचार किया। जस्टिस हृषीकेश राय की अध्यक्षता वाली बेंच में यूपी सरकार के वकील ने कहा कि डेटा हिंदी में आया है। हमें हलफनामा अनुवाद करने और दाखिल करने के लिए दो दिन का समय चाहिए। गाजियाबाद में नोडल अधिकारियों से इसकी जानकारी मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आपको जानकारी कब मिली? हमने मुख्य सचिवों को पहले ही निर्देश भेजे थे। अब आप समझ गए होंगे कि हमें आपको यहां क्यों बुलाना पड़ा, जब राज्य और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा जानकारी दी जानी है तो सरकार जवाब नहीं दे रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम यूपी में 75 जेलों को देख रहे हैं। यह जेल की बहुत बड़ी संख्या है जबकि अन्य राज्यों में दो या तीन जेल हैं। यह कानून है, जो यह आपकी भीड़भाड़ वाली जेलों को खाली करने में आपकी मदद कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के वकील से पूछा कि क्या आपने हमारा आदेश व्यक्तिगत रूप से आदेश देखा है? क्योंकि हम आपको जानते हैं यदि आपने पहले आदेश देखा होता तो आप हमें बताती, यह हमारी आपकी प्रशंसा है। यूपी सरकार के वकील ने कहा कि चूंकि एमाइकस की लिस्ट मे यूपी राज्य का नाम नहीं था। ऐसा इसलिए हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा जिन मामलों में एमाइकस होते है वहां राज्य के वकील सोचते हैं कि सब कुछ करना केवल एमाइकस का काम है? यूपी सरकार के वकील ने कहा कि केवल 41 अपराधी ऐसे हैं जिन्होंने विचाराधीन के रूप में आधी सजा तक काटी है। वही केवल 29 ऐसे अपराधी हैं जो पहली बार जेल मे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या इस बात का डेटा है कि जेल में कितनी महिला कैदी हैं?
एमाइकस ने कहा कि हमें जेलों का दौरा करने का मौका मिला और पाया कि जेल में छोटे बच्चों वाली महिलाएं हैं। एमाइकस ने सुझाव दिया कहा कि उन अंडर ट्रायल महिला कैदियों की एक अलग सूची बना सकते हैं जिन्हें आजीवन या मृत्युदंड की सज़ा नहीं दी गई है। हम एक सूची बना सकते हैं और देख सकते हैं कि इस प्रावधान के बाहर भी क्या किया जा सकता है? कोर्ट ने कहा आप कह सकते हैं कि संख्या केवल 29 या 30 ही हो सकते हैं लेकिन आपके पास डेटा होना चाहिए। जब आपको पता है कि अदालत इस पर विचार कर रही है। सुनवाई के दौरान एमाइकस क्यूरी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि झारखंड में भी बहुत सारे मामले लंबित हैं। जिनमें रिहाई के हकदार कैदियों की कुल संख्या 23 है। अदालत में भेजे गए 17 मामले है, जबकि 6 को रिहा किया गया है। जबकि गोवा के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया। मैंने पिछली बार डेटा के साथ हलफनामा दायर किया था।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपका यह तरीका सही नहीं है, हमने मुख्य सचिवों से जानकारी मांगी थी। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है, इस मामले को आज सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था, फिर भी वही स्थिति है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि मणिपुर की ओर से कौन पेश हो रहा है? मणिपुर सरकार ने कहा कि एक भी व्यक्ति रिहाई के योग्य नहीं पाया गया है। आपके दिए गए बयान में कुछ डेटा और विश्वसनीयता होनी चाहिए, आपको विवरण देना होगा।