मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में अस्पष्ट दस्तावेजों की आपूर्ति से जुड़ी अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि हम मामले में फैक्ट्र पर नहीं जा रहे है। हम सिर्फ कानून के सवाल पर जा रहे हैं कि दस्तावेजों की मांग करने के लिए आरोपी का अधिकार क्या है?। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ED से कई तीखे सवाल पूछे। SC ने सवाल उठाया कि केवल तकनीकी आधार पर आरोपी को दस्तावेज देने से एजेंसी कैसे इनकार किया जा सकता है?
जस्टिस अभय एस ओक की अध्यक्षता वाली बेंच ने सवाल उठाया कि केवल तकनीकी आधार पर आरोपी को दस्तावेज देने से एजेंसी कैसे इनकार किया जा सकता है? कोर्ट ने एजेंसी से पूछा कि कभी-कभी ऐसा कोई निर्णायक दस्तावेज हो सकता है जो ED के पास हो सकते है। आप य़ह कैसे कहते हैं कि आरोपपत्र दाखिल करने के बाद यह निर्णायक दस्तावेज आरोपी को उपलब्ध नहीं कराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एजेंसी द्वारा ऐसा किया गया तो क्या यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके अधिकार का हनन नहीं?।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें तथा जांच एजेंसियां आरोपी को दस्तावेज उपलब्ध कराने के मामले में कठोर नहीं हो सकतीं। यह जमानत का मामला है इसलिए समय बदल गया है, कि हम किस हद तक दस्तावेजों की सुरक्षा के लिए कह सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि क्या हम इतने कठोर हो जाएंगे कि एक व्यक्ति अभियोजन का सामना कर रहा है, लेकिन हम दस्तावेज सुरक्षित रखने के नाम पर दस्तावेजों को न देना क्या यह न्याय होगा? ऐसे बहुत जघन्य मामले हैं जिनमें जमानत दी जाती है, लेकिन आजकल मजिस्ट्रेट मामलों में लोगों को जमानत नहीं मिल रही है।