यूपी की जेलों में बंद कैदियों की क्षमा याचिकाओं पर निर्णय लेने में देरी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को फिर फटकार लगाते हुए कहा कि हमारे आदेश के बावजूद उनकी अवहेलना करते हुए क्षमा याचिकाओं पर निर्णय नहीं ले रही है। जबकि हमारे आदेश में य़ह साफ़ था कि इस मामले में आचार संहिता आड़े नहीं आएगी। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा कि आप हर मामले में हमारे आदेशों की अवहेलना कैसे कर रहे हैं? जब हम आपको समय से पहले रिहाई के मामले पर विचार करने का निर्देश देते हैं तो आप उसका पालन नहीं करते? इस मामले मे कोर्ट ने पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश के कारागार विभाग के प्रमुख सचिव को अदालती आदेशों का पालन न करने पर VC के जरिए पेश होने का निर्देश भी दिया था।
वहीं यूपी सरकार की वकील गरिमा प्रसाद ने कहा कि सभी मामलों की फाइलें उत्तर प्रदेश के राज्यपाल (सक्षम अधिकारी) के पास हैं। वह फ़िलहाल बाहर थीं आज उनके वापस आने की संभावना है और इस पर कार्रवाई की जाएगी। प्रसाद ने बताया कि हमने पांच जुलाई को संबंधित मंत्री को फाइल भेजी और वहां से 11 जुलाई को मुख्यमंत्री के पास भेज दी गई और छह अगस्त को राज्यपाल को भेज दी गई थी। जब जस्टिस ओका ने कहा कि इस देरी के लिए कैदी को मुआवजा कौन देगा? इस पर गरिमा प्रसाद ने कहा कि हमें 16 अप्रैल को प्रस्ताव मिला और इसी बीच आचार संहिता लागू हो गई। यूपी सरकार की दलील पर जस्टिस ओका ने कहा कि हमने कहा था कि य़ह ( आचार संहिता) आड़े नहीं आएगा। इस पर यूपी सरकार ने कहा कि सीएम सचिवालय को फाइल ही नहीं मिली थी।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि यूपी सरकार के वकील के पास मामले मे इतनी देरी के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं है। जबकि आदेश स्पष्ट होने के बावजूद कि आचार संहिता रिहाई के मामले में निर्णय लेने के रास्ते में नहीं आएगी। सीएम के सचिव को भेजी गई फाइल स्वीकार नहीं की गई और आचार संहिता खत्म होने के बाद ही फाइल सीएम सचिवालय को भेजी गई। ऐसे मे यूपी सरकार के वकील को निर्देश देते हैं कि वह हलफनामा दाखिल करके उन अधिकारियों के नाम बताएं जिन्होंने फाइलें लेने से इनकार कर दिया। साथ ही यह भी बताएंगे कि क्या उन्होंने संबंधित अधिकारियों को बताने का कोई प्रयास किया कि सरकार को कोर्ट के आदेशों का पालन करना होगा। कोर्ट ने कहा कि अवमानना नोटिस जारी करने से पहले हम राकेश कुमार को निर्देश देते हैं कि वह हलफनामा दाखिल करें जिसमें उन्होंने मौखिक रूप से जो कुछ कहा है उसे भी शामिल करें। मामले की अगली सुनवाई 20 अगस्त को होगी।