पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन जुड़े IMA के अध्यक्ष डॉ. आरवी अशोकन के खिलाफ अवमानना के मामले में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आरवी अशोकन ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अदालत की टिप्पणी पर मीडिया में दिए गए विवादित बयान पर अखबार में माफीनामा छपवा दिया है। इस पर IMA के अध्यक्ष को फटकार लगाते हुए कहा की आप हमें न्यूज़ पेपर की कॉपी दीजिए बिना उसके हम आपकी बात नही सुनेंगे, अशोकन की तरफ से पेश वकील ने कहा कि मेरा इंटरव्यू कभी किसी न्यूज़ पेपर में नही छपा, हालांकि आशोकन अदालत में मौजूद है अगर अदालत चाहे तो वो अदालत से माफी मांग लेंगे। फिर कोर्ट ने कहा कि हमें पेपर द हिंदू का बेंगलुरु एडिशन दिखाइए। जब कोर्ट ने उसमें दिए गए माफ़ीनामा का साईज देखा, उसके बाद अशोकन को फटकार लगाते हुए कहा कि माफीनामा बहुत छोटा है। हम इसे पढ़ भी नहीं पा रहे है।
कोर्ट ने कहा कि माफीनामा एक राष्ट्रीय पेपर में छपा लेकिन य़ह बहुत छोटा है। अशोकन सभी उस राष्ट्रीय अखबार के 20 एडिशन की कॉपी अदालत में दाखिल करें, जो माफीनामा उन्होंने छपवाया हैं। कोर्ट ने कहा कि अदालत की टिप्पणी पर अशोकन ने मीडिया में बयान दिया था। वहीं इसी मामले मे विज्ञापनों के माध्यम से फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स कंपनियों द्वारा किए गए भ्रामक स्वास्थ्य दावों के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आयुष मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना पर रोक लगा दी है, जिसमें औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 को हटा दिया गया था। औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 का नियम 170 आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंत्रालय द्वारा जारी य़ह अधिसूचना उसके 7 मई, 2024 के आदेश के अनुरूप नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि 29 अगस्त, 2023 के पत्र को वापस लेने के बजाय, मंत्रालय को सबसे अच्छे से ज्ञात कारणों से, ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स नियम, 1945 के नियम 170 को हटाने के लिए एक जुलाई की अधिसूचना जारी की गई है, जो इस अदालत द्वारा जारी निर्देशों के विपरीत है। मामले मे केंद्र की ओर से पेश ASG के एम नटराज ने कहा कि वह स्थिति स्पष्ट करते हुए एक हलफनामा दाखिल करेंगे। केंद्र ने पहले अपने अगस्त 2023 के पत्र का बचाव किया था।जिसमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अधिकारियों से कहा गया था कि वे ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स नियमों के नियम 170 का उल्लंघन करने के लिए किसी भी इकाई के खिलाफ कार्रवाई शुरू न करें। सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों पर शिकंजा कसते हुए शीर्ष अदालत ने सात मई, 2024 को निर्देश दिया था कि किसी विज्ञापन को जारी करने की अनुमति देने से पहले, केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 की तर्ज पर विज्ञापनदाताओं से एक स्व-घोषणा लेने के बाद इसका प्रसारण किया जाए।