साल 2002 के बहुचर्चित नीतीश कटारा हत्या के दोषी सुखदेव पहलवान की रिहाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर किसी व्यक्ति को कोर्ट से निश्चित समयावधि 20 साल की उम्रकैद की सज़ा हुई है, तो वो उस अवधि की सज़ा जेल में काटने के बाद रिहाई का हकदार है और उसे सज़ा में छूट की उस प्रकिया को अपनाने की ज़रूरत नहीं है, जो उम्र कैद की सज़ा पाने वाले दूसरे कैदियों के केस में होती है।
दरअसल, उम्रकैद के मामलों में 14 साल की सज़ा काटने के बाद राज्य सरकार सज़ा में छूट का फैसला लेती है। सरकार रिव्यू बोर्ड और सज़ा सुनाने वाले ट्रायल कोर्ट के जज की सहमति के बाद ऐसा फैसला लेती है। सुप्रीम कोर्ट ने देश भर की विभिन्न जेलों में बंद ऐसे सभी कैदियों की तत्काल रिहाई का आदेश दिया है जो कोर्ट की ओर से तय की गई निश्चित समयावधि की उम्रकैद की सज़ा पूरी कर चुके है।
आपको बता दें कि जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने दोषी सुखदेव यादव उर्फ पहलवान को इस बात पर गौर करते हुए रिहा करने का आदेश दिया था कि उसने मार्च में 20 साल की सजा पूरी कर ली है। सजा पुनरीक्षण बोर्ड ने यादव की रिहायी की याचिका उसके आचरण का हवाला देते हुए खारिज कर दी थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा था कि एक अदालत द्वारा पारित आदेश को एसआरबी कैसे नजरअंदाज कर सकता है?।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि सजा पुनरीक्षण बोर्ड न्यायालय के आदेश की अनदेखी कैसे कर सकता है? अगर ऐसा होगा, तो हर जेल में बंद आदमी वहीं मर जाएगा। क्या ये कार्यपालिका अधिकारी का आचरण है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यादव को 20 साल की सजा पूरी होने के बाद रिहा किया जाना चाहिए था, तब दिल्ली सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे ने दलील दी थी कि 20 साल की सजा के बाद स्वतः रिहायी नहीं हो सकती और आजीवन कारावास का अर्थ है, शेष प्राकृतिक जीवन तक जेल में रहना।